महान संगीतज्ञ बैजू बावरा की कहानी
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महान संगीतज्ञ बैजू बावरा की कहानी

बैजू बावरा या बैजनाथ मिश्र भारत के प्रसिद्ध द्रुपद गायक थे। बैजनाथ मिश्र  ग्वालियर के राजा मान सिंह तोमर के यहाँ गायक थे।  उनके जीवन के बारे में बहुत सी किवंदन्तियाँ  है जिनकी   ऐतिहासिक रूप से पुष्टि नहीं की जा सकती ।

विंध्याचल पर्वत की गगनचुम्बी श्रेणियों के बीच बसा चंदेरी शहर भारत काल से आजतक किसी न किसी कारणों  से प्रसिद्ध रहा है महाभारत काल में भगवान श्री कृष्ण और राजा शिशुपाल के कारण तथा मध्य काल में  महान संगीतज्ञ बैजू बावरा , मुग़ल सम्राट बाबर एवं मणिमाला के कारण यह नगर इतिहास में अपना मुख्या स्थान बनाये हुए है  ।

बैजू बावरा कि मृत्यु सन १६१० चंदेरी में वसंत पंचमी के दिन हुई थी । आज भी चंदेरी में बैजू बावरा की समाधी स्थित है जहाँ हर साल वसंत पंचमी के दिन बैजू बावरा महोत्सव मनाया जाता है ।

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बैजनाथ जी का जीवन परिचय

बैजनाथ या बैजू बावरा जी का जन्म शरद पूर्णिमा की रात १५४२ में चम्पानेर के  एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था परन्तु  ऐसा भी कहा जाता  है की उनका जन्म चंदेरी में हुआ था । पंडित बैजनाथ जी को अपने  बाल्य काल से ही  संगीत में रूचि रखते थे तथा  उन्हें लोग प्रेम से बैजू भी बुलाया करते थे । कुछ समय बाद बैजू महान संगीतज्ञ हो  गए ।बैजनाथ जी ने एक गोपाल नाम के पुत्र को  गोद लिया था उन्होंने अपने पुत्र को शिक्षा दी साथ-साथ उन्होंने संगीत का भी ज्ञान दिया । उनके पुत्र गोपाल ने  उनकी शिष्य प्रभा से विवाह किया और  कुछ समय बाद उनकी पुत्री हुई जिसका नाम मीरा रखा । कुछ समय बाद बैजनाथ जी को  ग्वालियर के राजा मान सिंह तोमर ने अपने महल में आमंत्रित किया  वहां ग्वालियर की रानी मृगनयनी उनकी शिष्य बनी।

बैजनाथ जी को बैजू बावरा की उपाधि क्यों दी गयी

कुछ समय के लिए जब बैजनाथ घर से दूर थे तभी कश्मीर के राजा ने गोपाल को बुलाया गोपाल अपने पुरे परिवार के साथ चंदेरी हमेशा के लिए छोड़के चले गए थे जब बैजू घर लौटे तब उन्हें कोई नहीं मिला अपनी पोती भी नहीं वह सभी जगह अपने परिवार को ढूंढ़ने लगे । परिवार न मिलने के वियोग में बैजू बावरे होगये इसीलिए उन्हें बैजू बावरा के नाम से जाना जाता है ।

संगीत प्रतियोगिता

सम्राट अकबर संगीत एवं कला को बहुत पसंद करते थे  तानसेन अकबर के दरबार में नौ रत्नों में से जाने जाते थे। एक बार अकबर ने अपने दरबार में संगीत प्रतियोगिता का आयोजन रखा । उस प्रतियोगिता में सम्राट ने एक शर्त राखी कि जो भी तानसेन से यह प्रतियोगिता जीतेगा वो अकबर के दरबार में संगीतकार बनकर  रहेगा अथवा जो हारेगा उसे मृत्यु दंड दिया जायेगा । बैजू बावरा ने अपने गुरु हरिदास जी से आज्ञा लेके प्रतियोगिता में भाग लिया ऐसा कहा जाता है कि इस  प्रतियोगिता के अंत में बैजू कि हार हुई थी । लकिन बैजू कि कला से अकबर बहुत प्रसन्न हुए और उनको अपने दरबार में शामिल होने का प्रस्ताव रखा

एक तथ्य यह भी है —-

अकबर के दरबार के इतिहासकार अबुल फज़ल और औरंगज़ेब के इतिहासकार फ़कीरुल्लाह के अनुसार इस प्रतियोगिता में बैजू ने तानसेन को हराया था और तानसेन ने बैजू के चरण छू कर अपने प्राणो को माँगा था अंत में बैजू तानसेन को माफ़ करके ग्वालियर चले गए

संरक्षित ऐतिहासिक पुस्तकों के अनुसार बैजू जी राग दीपक गाकर दीपक जला सकते थे, राग  मेघ, गौड़ मल्हार या मेघ  मल्हार  गाकर वर्षा भी करा सकते थे राग भरा गए कर फूल भी खिला सकते थे और यहाँ तक कि राग मालकौंस  गाकर पत्थर को भी पिघला सकते थे ।

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१९५२ में हिंदी सिनेमा ने बैजू बावरा नाम कि फिल्म प्रस्तुत कि थी जो बैजू बावरा कि कहानी दर्शाती है इसी फिल्म का एक लोकप्रिय संगीत जिसके माध्यम से आज भी हमारे दिल में बैजनाथ मिश्र उर्फ़ बैजू बावरा बसे हुए है ।

तू गंगा कि मौज में जमुना तारा

हो रहेगा मिलान ये हमारा तुम्हारा,

स्वीकृति दंडोतिया