इस लेख दुवारा आपको यह जानने मिलेगा गरुड़ जी जो की विष्णु जी के वाहन थे उनका किस तरह राम के ब्रह्मा होने का ब्रह्म दूर हुआ और कभुसुंडि को कैसे काक शरीर की प्राप्ति हुई।
राम रावण युद्ध के समय एक बार मेघनाथ ने नागपाश के द्वारा राम लक्ष्मण को नागपाश में बाँध दिया, राम लक्ष्मण मूर्छित होकर गिर गए यह! देख कर देवऋषि नारद गरुड़ को बुला कर लाये और राम लक्ष्मण को नागपाश से बंधनमुक्त करने हेतु कहा। गरुड़ ने नागों का बंधन काट कर राम लक्ष्मण को मुक्त कर दिए और वे पुनः युद्ध करने लगे।
गरुड़ ने लौट कर सोचा की राम को सभी विष्णु का अवतार मानते है, यदि ये मेरे स्वामी नारायण है तो नागपाश में क्यों बांध गए और ऐसा आचरण क्यों कर रहे की मुझे इन्हे बंधनमुक्त करना पड़ा, गरुड़ ने यह भी सोचा की में ब्रह्मित हो रहा हूँ अत: मुझे अपने ब्रह्म का निवारण देवऋषि से कारना चाहिए।
गरुड़ देवऋषि नारद के पास गए उन्होंने उन्हें ब्रह्मा जी के पास भेजा और ब्रह्मा जी ने शिवजी के पास- शिवजी कुबेर के पास जा रहे थे अत: उन्होंने गरुड़ को काकभुसुंडी के पास जाने हेतु कहा उन्होंने कहा – उत्तर की ओर नीलगिरि पर्वत पर एक वटवृक्ष है उसकी शीतल छाया में काकभुसुंडी प्रतिदिन राम कथा बोलते है और हज़ारों पक्षी उसका श्रवण करते है।
शिवजी बोले – हे! पक्षीराज गरुड़ राम कथा सुन कर तुम्हारे सभी ब्रह्म का निवारण हो जायेगा अत: तुम काकभुसुंडी के पास जाओ।
नीलगिरि पर्वत पर जा कर गरुड़ राम कथा स्थल पर पहुंचे! काकभुसुंडी ने गरुड़ का स्वागत किया और उन्हें आसान प्रदान करके कहा- हे! पक्षीराज आपके दर्शन करके में कीर्थार्थ हुआ आप किस प्रयोजन से पधारे है कृपा कर मुझे बताएं, गरुड़ ने कहा- की यहाँ पर आकर मेरे सभी ब्रह्म दूर होगये है आप बस मुझे राम कथा सुनाने की कृपा करें। तब काकभुसुंडी जी ने राम कथा सुनना प्रारम्भ किया- राम जन्म के कारन, नारद मोह, धनुष भंग, राम विवाह, राम वनवास, सीता हरण, जटायु उद्धार, राम रावण युद्ध,राम राज्य अभिषेक, पूर्ण कथा सुनाई। कथा सुनकर गरुड़ जी अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा – हे! नाथ मेरा मोह कथा सुनकर पूरी तरह नष्ट होगया है ।
तब काकभुसुंडी जी ने कहा- हे! पक्षीराज इसी प्रकार मेरे को भी मोह होगया था तब गरुड़ जी बोले उसकी कथा आप मुझे सुनाइए काकभुसुंडी ने कहा – में प्रत्येक कल्प में राम जन्म होने पर में अयोध्या जाता था और राम जी बाल लीलाओं में सहभागी होता और ५ वर्ष तक अयोध्या में रहता था उनकी लीलाओं से उनके ब्रह्मा होने पर मुझे ब्रह्म होगया। एक बार रामचंद्र जी पुआ खा रहे थे उनकी झूठन जो नीचे गिर जाती थी वो में खा लेता था यह देख रामचंद्र जी ने पुआ मेरी और बढ़ाया में उनकी ओर गया तो वो दूर चले गए फिर उन्होंने मुझे पकड़ने के लिए अपना हाथ बढ़ाया इससे में डर कर दूर भागा उनका हाथ बढ़ता ही चला गया और में सातों लोक में घूम आया परन्तु उनका हाथ मेरे पीछे ही बढ़ता गया और में थकित होकर गिर गया, मेरे आंख खोलकर देखने पर मैंने देखा की में अयोध्या में ही हूँ और भगवन मुझे बाल रूप में देख कर है रहे है उनके हसने पर में उनके मुख में चला गया उनके उदर में अनेक ब्रह्माण्ड थे हर ब्रह्माण्ड में सूर्य, चंद्र, ब्रह्मा विष्णु महेश अलग अलग थे सभी ब्रह्माण्ड में अलग अलग अयोध्या थी दशरथ थे उनके पुत्र थे परन्तु रामचंद्र जी एक ही थे प्रत्येक ब्रह्माण्ड में १०० वर्ष रहा ।
अंत में में अयोध्या आगया तब मैंने देखा की में अयोध्या में हूँ और भगवन राम मेरे सामने बाल रूप में खड़े तब मेरी मति ब्रह्मित होगई मैंने श्री राम से प्राथना की हे! प्रभु रखा कीजिए- मेरी प्रेम सी भीगी नमी सुनकर भगवन ने माया का विस्तार रोक दिया और प्रसन्नता पूर्वक वर मांगने कहा – मैंने उनसे अविचल भक्ति का वरदान माँगा
भगवन राम ने भक्ति के वरदान देने साथ साथ ज्ञान, बैराग्य, ऐश्वर्या सभी का वरदान दिए और ये भी वरदान दिया हे!- काक तुमको इच्छा मृत्यु का वरदान देता हूँ और जिस शरीर में जाना चाहोगे उस शरीर की प्राप्ति होगी और प्रत्येक जन्म में तुम्हे पूर्व जन्म का िस्मरण रहेगा ।
हे! गरुड़ जी कुछ दिन में अयोध्या बास करने के बाद में अपने आश्रम में लौट आया ।
गरुड़ जी ने कहा – हे! नाथ मेरी एक अन्य शंका का समाधान कीजिए – अपने काक शरीर कैसे पाया और कब से इस शरीर में है?
काकभुसुंडी बोले – हे! पक्षीराज सर्वप्रथम मैंने शत्रु योनि प्राप्त की और में उज्जयिनी नगरी पंहुचा वहां में एक मंदिर में शिवजी की पूजा करने लगा और उनका ध्यान करने लगा उसी मंदिर में एक ब्राह्मण संत भी शिवजी की आराधना करते थे उन्होंने मुझे दीक्षा दी शिव मंत्र दिया और शिव आराधना हेतु कहा।
एक बार में शिव मंदिर में बैठ कर ध्यान कर रहा था तब ही गुरूजी वहां आए- गुरु का आगमन में जान गया था फिर भी गुरु के आदर स्वरुप ना तो में उठा और ना प्रणाम किया गुरु के अनादर से शिवजी बहुत कुपित हुए और आकाशवाणी हुई- हे! अधम तूने गुरु का अनादर किया है और ब्याल की तरह बैठा रहा में तुझे श्राप देता हूँ की तू सर्प योनि में चला जा और हज़ार योनि तक नीच यूनीओं में जन्म लेता रहेगा ।
आकाशवाणी सुनकर मेरे गुरु बहुत घबरा गए और उन्होंने मंत्रो द्वारा शिव इस्तुति करके शिवजी को प्रसन्न किया और मुझे क्षमा करने हेतु प्राथना की इस्तुति से प्रसन्न होकर शिवजी ने कहा – की इसे नीच यूनियॉं में जाना ही होगा परन्तु जन्म मरण का कष्ट नहीं होगा और पूर्व जन्म का ज्ञान और ईश्वर भक्ति प्रत्येक जन्म में बनी रहेगी ।
हे! पक्षीराज इस प्रकार में सर्प योनि में चला गया और बारम्बार हज़ार जन्मों तक जन्म मरण झेलता रहा, परन्तु! मुझे जन्म मरण का कष्ट नहीं हुआ और इस्मृति और भक्ति बानी रही। अंत में में एक ब्राह्मण कुल मैं उत्पन हुआ और ईश्वर भजन के फल स्वरुप मेरा मन भक्ति में ही लीं रहा अतः युवा होने पर में जंगल में चला गया और विभिन मुनियों के आश्रम में फिरता फिरता लोमश ऋषि के आश्रम में पंहुचा- लोमश ऋषि ने मुझसे आना का प्रयोजन पूछा , मैंने उन्हें राम भक्ति हेतु उपदेश देने की प्राथना की। लोमश ऋषिने मुझे आश्रम में रख लिया और सगुन( साकार) ब्रह्म राम जी की आराधना का उपदेश दिया परन्तु उसी क्रम में वो निराकार ब्रह्म की व्याख्या करने लगते थे में बार बार उनसे सगुन ब्रह्म की व्याख्या हेतु आग्रह करता था । मेरे सगुन ब्रह्म राम की प्राथन कर वे एक बार क्रोधित होगए, और क्रोधित होकर उन्होंने कहा कि- कउआ(काक) की तरह कांये कांये कटा है इसीलिए तू काक होजा, हे! पक्षीराज मैंने काक शरीर धारण कर लिया और हर्षित होकर ऋषि को प्रणाम करके उड़ने लगा उसी समय ऋषि को उनके क्रोध का ज्ञान हुआ और उन्होंने कृपा पूर्वक मुझे वापस बुला लिया , मुझसे कहा- अब कुछ दिन तुम यहीं रहो, ऋषि ने प्रसन्न होकर मुझे राम मंत्र दिया और राम के बाल रूप की लीलाओं को विशद रूप से समझाया साथ ही उन्होंने मुझे वरदान दीया की तुम्हे ज्ञान, भक्ति, वैराग्य, और राम कृपा हमेशा बानी रहेगी तुमको इच्छा मृत्यु का भी वरदान देता हूँ।
हे! पक्षीराज काक के शरीर में मुझे इष्ट देव की प्राप्ति हुई और वे सभी कुछ मुझे प्राप्त हुआ जो ऋषि मुनियों को सुलभ नहीं है कल्प के अंत में भी मुझे मृत्यु नहीं होती है । ऋषि ने मुझे ये आशीष भी दिया जहाँ तुम रहोगे उसके आस पास अनेक योजन तक अज्ञान और मोह का किसी को भी कष्ट नहीं होगा।
हे! नाथ राम कृपा से २७ कल्पों से में इसी शरीर में हूँ और निरंतर राम कथा करके आनंदित रहता हूँ। गरुड़ जी ने कहा – की हे ! पक्षी श्रेष्ठ आपके दर्शन एवं आपकी कृपा से मेरे सभी संदेह और मोह नष्ट होगए है !