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सती और शक्ति पीठ

सती जी और शक्ति पीठ का एक रोचक वर्णन श्री रामचरितमानस के माध्यम से प्रस्तुत कर रहे है ।

दक्ष प्रजापति की पुत्री सती को शिवजी ने पत्नी के रूप में बरन किया था। एक बार शिवजी और सती याज्ञवल्का मुनि के आश्रम से श्री राम कथा श्रवण करके आ रहे थे कि उसी समय उन्होंने श्री राम को १४ वर्ष के वनवास की अवधि में विचरण कर रहे थे. उस समय रावण सीता जी का हरण कर चुका था इसीलिए श्री राम चंद्र जी अत्यंत वियोग की अवस्था में लता वृक्ष और पशुओं से सीता जी के बारे में पूछ रहे थे । उसी समय शिवजी ने रामचंद्र जी को प्रणाम  किया और सती जी के संग कैलाश पर्वत पर चले गए तब सती जी ने शिवजी से पूछा आप स्वयं विश्व के परमेश्वर है तो अपने रामचंद्र जी को प्रणाम क्यों  किया।शिवजी  ने उत्तर देते हुए कहा स्वयं परम ब्रह्म ने राम के रूप में अवतार लिया है परन्तु सती जी इस बात से सहमत नहीं हुई और कहने लगी अगर वह परम ब्रह्म है तो सीता जी के वियोग में दुखी क्यों है।

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शिवजी समझ गए की सती जी को उनकी बात पर भरोसा नहीं हो रहा है अत: उन्होंने सती जी को परीक्षा लेने हेतु कहा तब सती जी उसी स्थान पर जा पहुंची जहाँ रामचंद्र जी विचरण कर रहे थे।  सती जी  सीता जी के वेश में राम जी के समुख जा पहुंची।रामचंद्र जी ने सीता के वेश में सती जी को देख कर कहा हे! माता शंकर जी कहाँ है और आप वन में अकेले विचरण क्यों कर रही है। यह सुन कर सती जी घबरा गई और तुरंत वापस जाने लगी। तब  उन्हें राम लक्ष्मण सीता दिखे फिर वो जिधर देखती थी उन्हें राम लक्ष्मण सीता  ही दिखाई देते थे ।यह देख कर सती परेशान होगई।


सती लौट कर कैलाश पर्वत आगई  शिवजी ने सती से पूछा क्या आपने रामचंद्र जी कि परीक्षा ली ?  सती जी ने उत्तर दिया की मैंने आपकी बात पर भरोसा कर लिया और परीक्षा नहीं ली । परन्तु शिवजी पहचान गए थे कि सती जी ने सीता जी के वेश में परीक्षा ली थी ।रामचंद्र जी शिवजी के इष्ट देव है तब शिवजी ने मन में विचार किया की सती जी ने सीता जी के वेश में परीक्षा ली है अतः सती जी को पत्नी के रूप र्में स्वीकार करना भक्ति के प्रतिकूल होगा अतः उन्होंने मन ही मन सती जी का त्याग कर दिया और समाधी में लीन हो गए ।

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बहुत समय पश्चात्  समाधी खुलने के बाद शिवजी और सती दोनों पर्वत पर बैठे हुए थे  उसी समय सभी देवी देवता  प्रजापति के महल की ओर जा रहे थे सती ने शिवजी से पूछा ये सभी देवगन कहाँ जा रहे है ? शिवजी बोले तम्हारे पिता ने यज्ञ का आयोजन किया है उस यज्ञ में सम्मिलित होने ये सभी देवगन जा रहे है ।
सती ने यह देखर शिवजी से पूछा पिताजी ने हमे क्यों नहीं बुलाया? तब शिवजी बोले तम्हारे पिता हमसे बैर भाव रखते है इसीलिए नहीं बुलाया । सती जी ने यज्ञ में सम्मिलित होने की आज्ञा मांगी शिवजी बोले बिन बुलाये नहीं जाना चाहिए परन्तु यदि तुम्हारी बहुत इच्छा है तो तुम गणो के साथ चली जाओ ।
जब सती गणो के साथ अपने पिता के यहाँ पहुंची वहां पर उनकीमाता के अतिरिक्त उनसे किसी ने भी अच्छा व्यव्हार नहीं किआ यहाँ तक कि  उनके पिता ने उनसे बात  भी नहीं की इस सब से दुखी होकर सती ने योग-अग्नि अग्नि को अपनी देह समर्पित कर दी  और  यज्ञ में सम्मिलित सभी लोगो को चेतावनी दी कि शिवजी के अपमान का फल आप सब को भुगतना पड़ेगा ।

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उसी समय शिव गणो ने यज्ञ का विध्वंश कर दिया और यज्ञ में शामिल ऋषि मुनि और देवगणो के साथ दुर व्यव्हार किया
शिवजी को जब सती के प्राण विसर्जित होने का समाचार मिला तो वे अत्यंत दुखी और क्रोधित हुए और उस जगह पर गए जहाँ  सती ने  प्राण त्यागे थे । दुःख में शिवजी की आँखों से आंसू गिरे जिससे दो सरोवर बने एक सरोवर कटासराज में है जो पाकिस्तान में है और एक पुष्कर में जो राजस्थान में है । दोनों ही सरोवर हिन्दुओं के तीर्थ स्थल के रूप में जाने जाते है।

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शिवजी  सती के शरीर को अपने कंधे पर रख कर कई दिनों तक विचरण करते रहे  सती जी का शरीर अनेक भागो में अनेक स्थलों पर गिरता रहा जिससे उन स्थलों पर देवी के शक्ति पीठो की प्रतिष्ठा हुई। भारत के विभिन स्थानों पर ५२ शक्ति पीठ है जो कि हिन्दुओं द्वारा साक्षात् देवी के रूप में पूजे जाते है।

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